Profile

My photo
ADITYA KUMAR DAGA LYRICIST, POET, COMPOSER & ARTIST, RESEARCHING IN VEDIC TEXT & ASTROLOGY ASTROLOGER, PALMIST, NUMEROLOGIST, FACE & BODY READER, VASTU CONSULTANT RUDRAKSH AND HERBAL THERAPIST VEDIC MANTRA, YANTRA & TANTRA THERAPIST AND HEALER

Monday 5 April 2021

प्रारब्ध और भाग्य ! शनि की साढे साती !

Aditya Kumar Daga
Astrologer, Palmist, Numerologer, Vastu Consultant

प्रारब्ध और भाग्य ! शनि की साढे साती ! 

बस यही है जीवन का मूल आधार जो आपकी दशा और दिशा तय कर रहा है : इसको हर हाल में सुख में भी और दुख में भी उन्नत करते रहें : अपने धार्मिक प्रयत्नों से , जाने अनजाने घटित हुई भूलों की क्षमा याचना से, तथा मानवता के प्रतीक बनकर और समय समय पर होम , जप , तप , यज्ञ के द्वारा । 

जो घट चुका वो दुबारा लोटेगा तो नही पर आगे के जीवन की राह  आसान , निरापद , कष्ट विहीन जरूर होगी - उलझनों मे जरूर उजाला दिखाई देगा , जान बूझ कर आप गिरने से बचेंगें , अनजाने में घटित घटनाओं से छुटकारा पायेंगे ये निश्चित है । 

पर सबका मूल है कि आपके प्रारब्ध और भाग्य मे क्या लिखा है - कैसे करना हे आपको सबकुछ , कब, केसै , किस मुर्हत में , किस दिशा में , किस दशा में करना है ये होम ,यज्ञ , जप , तप, समर्पण की प्रकिया ये सब पहले ठीक से तय करना होगा जिससे आपके प्रयत्न निष्फल ना जायें तथा आपको आपके प्रयत्नों का पूरा लाभ मिले। अतः पहले आप अपनी कुंडली की पूरी विवेचना , हस्त रेखाओं का पूरा विवरण , तथा अंकों द्वारा अपने जीवन का पूरा ज्ञान अर्जित कीजिये तथा स्थान विशेष के वास्तु की समालोचना द्वारा पूरी बात जानिये - इस तरह आपके यत्न - प्रयत्न निष्फल नहीं जायेंगें तथा आपको क्रिया का पूर्ण फल मिलेगा ।


ये एक कटु सत्य है कि यदि कुछ आपके भाग्य में नहीं है तो कितना भी प्रयत्न कर लो पर मिलेगा नहीं या फिर मिलकर सब कुछ हाथ से निकल जायगा - लेकिन इससे भी बड़ा और ऊंचा एक और कटु सत्य है कि इस संसार में सारे दुख आपकी 'अपेक्षाओं, से र्निमित हो रहे हे , अपेक्षा है तो आशा है और आशायें हैं तो प्रयत्न है कभी कभी कठोर प्रयत्न ,  पर प्रयत्न फलित होगें या निष्फलित बस इसी बात पर टिका है आपके सारे सुखों या दुखों का साम्राज्य - और आप जानते भी नहीं हें कि ये प्रयत्न आपके सफल व फलित होगे या असफल व निष्फलित। 

किसी भी निर्दिष्ट फल के लिये यदि आप कोई भी प्रयत्न को पुनः पुनः कर रहे है तो विज्ञान सम्मत आपको फल मिलने की उम्मीद रहती है पर भाग्य विज्ञान नहीं है - जरूरी नहीं है कि आपके सारे प्रयत्न सफल व फलित हो क्योंकि कुछ भी निर्दिष्ट नही है बस आपको प्रयत्न करना है - लेकिन साथ ही ईश्वरीय निर्दिष्ट ॠषि - मुनियों द्वारा अलिखित तथा विवेचित मार्ग भी बताये गयें जो बहुत ही सटीक है मगर निंतात ही कठिन व दुर्दम्य । 

असंख्य बातों को ध्यान में रख कर किये हुए कार्य निश्चित फल देने वालें है मगर किसी विशिष्ठ व वरिष्ठ अनुभवी व्यक्ति कि देख रेख में। ये सौभाग्य भी कम लोगो को ही मिल पाता है पर विवशता हर प्रयत्न की जननी है । अतः इसे अपने प्रारब्ध व भाग्य की जरूरत मान कर जरूर अपनाना चाहियें तथा एकदम निराश होकर अकर्मण्य हो जाने से बेहतर है आशातीत रहकर प्रयत्नशील रहना।


शनि की साढे साती

शनि की साढे साती के बारे में अनेक वैदिक धर्म ग्रंथों में बहुत कुछ लिखा हुआ है तथा अनेकानेक ज्योतिषियों ने अनेक तरीकों से उसकी विवेचना की है। मैं भी अपने अनुभव के आधार पर तीन करीबी लोगों की कुंडली का उदाहरण देते हुए कुछ प्रमाणित तथ्य लिख रहा हूं। इससे पाठको को भविष्य में शनि के प्रभाव का आकलन करने में सुविधा होगी। 


शनि की साढे साती का प्रबल प्रभाव कमोबेश सभी झेलते हैं जितने भी आप आध्यात्मिक, धार्मिक, योगिक या ज्योतिषीय उपाय करले और कितना कुछ भी इसके बचाव में धारण कर ले पर ये साढे साती अपना प्रभाव दिखाती ही है। 
इस साढे साती का प्रबल प्रभाव अलग अलग राशियों पर अलग अलग समय अवधि में अधिक होता है जेसै : 

●मेष राशी के जातक को बीच की अढाई बर्ष की अवधि। 

●वृष राशी के जातक को प्रारम्भ की अढाई बर्ष की अवधि।

●मिथुन राशी के जातक को अतिंम की अढाई बर्ष की अवधि। 

●कर्क राशी के जातक को अंत के पांच बर्ष की अवधि।

●सिंह राशी के जातक को शुरू के पांच बर्ष की अवधि।

●कन्या राशी के जातक को शुरू के अढाई बर्ष की अवधि।

●तुला राशी के जातक को अंत के अढाई बर्ष की अवधि।

●वृश्चिक राशी के जातक को अंत के पांच बर्ष की अवधि।

●धनु राशी के जातक को शुरू के पांच बर्ष की अवधि।

●मकर राशी के जातक को अंत के अढाई बर्ष की अवधि।

●कुम्भ राशी के जातक को अंत के अढाई बर्ष की अवधि।

●मीन राशी के जातक को अंत के अढाई बर्ष की अवधि।

सामान्यतः उपरोक्त अवधियां प्रचंड कष्टकारी होती है मगर बाकी अवधि भी सामान्य रूप से अवरोधक के रूप में ही होती है। 

मगर कभी कभी शनि की साढे साती राजयोग का भी फल देती है। जब भी शनि नवम व दशम भाव का मालिक होगा लग्न या मजबूत चन्द्रमा से तथा शुक्र व गुरू की स्थिति अच्छी होगी।


जिसकी कुंडली में कालसर्प दोष , या कालसर्प छाया दोष है या फिर पितृदोष है उसके ऊपर इस साढे साती का प्रचंड प्रभाव दिखता है और एक ही घर में कई व्यक्तियों पर साढे साती आई हुई हो तो फिर ब्रह्मांड की कोई ताकत इसका प्रकोप झेलने से नहीं बचा सकती।  जेसै एक ही घर में निरंजन व उसकी पत्नी की कुंडली ; निरजनं 25/04/1962 4.19 Pm कलकत्ता, and उसकी पत्नी :22/01/1963 22.57 वाराणसी . लेख लिखते समय इन दोनो की ही कुंडली में शनि की साढे साती का विकट प्रभाव है। 
जन्म समय कुंडली में यदि ग्रह अष्टम व षष्ट भाव में बेठै हों तो व्यक्ति को इस दशा में हर तरह का अपमृत्यु भय या मृत्युतुल्य कष्ट होता है जिसका प्रभाव सभी उपायों को करने के बाबजूद दिखाई पङता है। जेसै निरंजन की कुंडली में अष्टम ग्रहों का प्रभाव।


ठीक ऐसे ही समय यदि गोचर में ग्रह जन्म राशी या जन्म नक्षत्र मे आये हुयें हो तो उस व्यक्ति का सर्वनाश होना ही है। प्रबल ज्योतिषीय, आध्यात्मिक, धार्मिक तथा योगिक उपायों से वो व्यक्ति अपने कष्टों का अनुभव कम तो कर सकता है पर प्रारब्ध जनित, पितृजनित, शाप जनित, शनि जनित कष्टो से छुटकारा नहीं पा सकता। 

जिसकी जन्म कुंडली में शनि यदि भाग्य भाव का मालिक है जेसै विकास की कुंडली विकास: 05/12/1964 at 18.55 , नागपुर तो शनि की साढे साती उतना प्रबल प्रभाव नहीं दिखाती जब तक की गोचर में शनि अष्टम भाव में नहीं आ जाता। उसमें भी भाग्य अवरोध से ज्यादा उतावलेपन में चोट या दुर्घटना की संभावना रहती है। 

जो स्वंय भाग्य का निर्माता ग्रह हो वो स्वयं के बनाये भाग्य को नहीं बिगाङता। यदि कुंडली में अन्य दुर्योग हों (अनेक विषम कुयोग व दुर्योग  होते हैं जो अनायास भाग्य को बिगाङ देते हैं) उनकी भी दशा वगैरह का संयोग बन जाये तब वो दोष शनि की साढे साती का नहीं माना जाता। विकास की कुंडली में ऐसा कोई अन्य दोष नहीं है। शनि की प्रथम अढैया में कर्मस्थान से मानसिक असतुंष्टी व दी गयी पूंजी की वापसी में विलम्ब  हुआ और  विलम्ब  हो रहा है  लेकिन पूंजी का क्षय नही हुआ। शनि के दूसरे अढैया में दीर्घकालीन नौकरी गयी मगर  एक अच्छे  परिवर्तन के लिए । थोङा मानसिक कष्ट बढा पर असीम कष्ट नहीं हुआ। लाख चाहने पर भी  कोई काम नहीं बना। शनि के तीसरे अढैया में काफी परिश्रम व प्रयास के बाद  नौकरी के बानक बनें मगर व्यक्ति को  उतावला होने के लिये  सख्त मनाही है क्योकि शनि सप्तम दृष्टि से अष्टम स्थान पर कर्क राशी को देख रहा है जो 06 अप्रैल से एक बर्ष तक दुर्घटना का कारण बन सकता है।



ठीक इसी तरह जन्म कुंडली में जब शनि कर्म भाव का स्वामी होता है लेकिन चंद्र सष्ट भाव का स्वामी होता है तो शनि की साढे साती के बाद अष्टम भाव का गोचर शनि प्रबल रूप से प्रभाव दिखाता है यानि पूरे 10 बर्ष । उठती साढे साती की दशम दृष्टी उसके पूंजी भाव पर पङता है अतः शनि ने सारी पूंजी निकलवा कर अपनी पसंदीदा चीज जमीन इत्यादी खरीदने में लगवा देता है। एक व्यक्ति ने तो भाग्य पर आये हुये हर कष्ट  को कर  झेल कर शनि मन्दिर बनवा दिया तो शनि भगवान की कृपा से उसको आर्थिक मदद व योजनाएं  मिलती गई। लेकिन चुकीं साढे साती का दो भाग सष्टम व षष्ट भाव  पर था अतः स्वयं को व पत्नी को हर तरह के अवरोध व  कष्ट का सामना करना पङा – ऋणग्रस्त, रोगग्रस्त, कर्मत्रस्त, सभी कुछ होना पङा ।
जब भी लगन राशी व चंद्र राशी अलग अलग हो तो साढे साती ज्यादा परेशान करती है। कन्या लगन व धनु राशी की स्थिति में शनि पंचमेश व षष्टेश या फिर द्वितियेष व तृतीयेश होकर  दो अच्छे दो बुरे घर का स्वामी हो जाता है अतः शनि की साढे साती के मिश्रित फल मिलते हैं।।

22/02/2021

Aditya Kumar Daga
Astrologer, Palmist, Numerologer, Vastu Consultant

https://www.adityaastroworld.wordpress.com


 



No comments:

Post a Comment